Friday, December 17, 2010

रास्ते की बात

समय के पथ पर चलता हूँ,
मैं अनजान रस्ता हूँ,
ना समझो तो पराया हूँ,
और समझ सको तो अपना हूँ.

है लगन अगर तो पार करो,
और नहीं लगन तो खड़े रहो,
या तो डूबो मझधारे में,
या बैठ किनारे पड़े रहो.

जो चाह तुम्हें कुछ पाने की,
तो आओ, मुझपे आगे बढ़ो,
यत्न करोगे, तो पाओगे,
बस विजय गीत का गान करो.

कुछ जीते हैं, कुछ हारे हैं,
और कुछ किस्मत के मारे हैं,
जो बैठे रहे, वो सिमट गए,
जो आगे बढे, मेरे प्यारे हैं.

ये समय चक्र यूँ चलता है,
और पथिक अनगिनत आते हैं,
हैं मंजिल पाते, वो अपनी,
हम यही खड़े रह जाते हैं.

है इतनी सी ये अपनी कथा,
बस तुमको आज सुनानी है,
मत बढ़ो तुम गैरों की डगर,
तुम्हें अपनी राह बनानी है.

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