Monday, October 31, 2011

जन नेता

एक पडोसी का लड़का, मुझसे आकर कहता है,
कौन है ये कुरते वाला जो, बगल में अपने रहता है.
मैंने कहा, ये जीव अजब सा, जन नेता कहलाता है,
जन के कण कण को ये बंदा, रूप बदल कर खाता है.

एक रूप है दीन-हीन सा, घर घर झोली फैलाता है,
दूजे रूप में ये बंदा, विकराल काल बन जाता है.
आये चुनाव तो चुपके से, जन प्रतिनिधि बन जाता है,
अगर कही से जीत गया तो, सर्पदंश दिखलाता है.

दंश लगा दे एक बार तो, मर जाए हम पड़े पड़े,
और हमारी लाशो पर वो, अपनी कमाई खाता है.
बाढ़, सूखा, अकाल पर, रोया नहीं जाता इस से,
हाँ पर, इस विषय पर, घडियाली  आंसू  बहाता है.

जो दिल में दया होगी तेरे, तू कभी नहीं ऐसा  बनना,
आज का चोर और रावण, जन नेता कहलाता है

No comments:

Post a Comment

कुछ अनछुए पन्ने