बादल की ज़रुरत क्या है, कोई पूछे रेगिस्तान से,
पानी की ज़रुरत क्या है, कोई पूछे किसी किसान से,
शायद ना किसी को होगी, अब इतनी ज़रुरत तेरी,
मुझको है ज़रुरत ऐसी, जैसी होंठों की मुस्कान से.
चाहा है तुम्हें हमने, जैसे लौ को परवाना,
परवाने से भी बढ़के, मैं हूँ तेरा दीवाना.
वो जलता है शमां में, मैं तुझमें ही जीता हूँ,
तुझसे मेरा है रिश्ता जैसे, चेहरे की पहचान से.
पानी की ज़रुरत क्या है, कोई पूछे किसी किसान से,
शायद ना किसी को होगी, अब इतनी ज़रुरत तेरी,
मुझको है ज़रुरत ऐसी, जैसी होंठों की मुस्कान से.
चाहा है तुम्हें हमने, जैसे लौ को परवाना,
परवाने से भी बढ़के, मैं हूँ तेरा दीवाना.
वो जलता है शमां में, मैं तुझमें ही जीता हूँ,
तुझसे मेरा है रिश्ता जैसे, चेहरे की पहचान से.
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