Monday, July 6, 2020

प्रेम परिभाषा

कुछ खिले अनखिले फूलों सी,
सावन की मतवाली झूलों सी,
फरवरी की ठंडी बहारों सी,
सावन की रिमझिम फुहारों सी,
कुछ कही अनकही आशा है,
प्रेम की यही परिभाषा है।

कान्हा की मधुर मुरली सी है,
नभ में चमचम बिजली सी है,
है बालपन का जोश भरा,
यौवन की तरह पगली सी है,
निश्छल एक प्रेम पिपाषा है,
प्रेम की यही परिभाषा है।

उन्माद भरा ये सागर है,
जल से लथपथ इक गागर है,
बस अपनेपन का भूखा है,
अमृतरस में डूबा मधुकर है,
इक तृष्णा है, इक भाषा है,
प्रेम की यही परिभाषा है।

अपनी तन्हाई का आलम क्या बताएँ हम,
बस एक सुबह होती है, बस एक शाम होती है।
पथरा गयी हैं आँखें उनके दीदार को,
उनके सजदे में ज़िन्दगी अब तमाम होती है।।

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