प्रेम परिभाषा
कुछ खिले अनखिले फूलों सी,
कुछ खिले अनखिले फूलों सी,
सावन की मतवाली झूलों सी,
फरवरी की ठंडी बहारों सी,
सावन की रिमझिम फुहारों सी,
कुछ कही अनकही आशा है,
प्रेम की यही परिभाषा है।
कान्हा की मधुर मुरली सी है,
नभ में चमचम बिजली सी है,
है बालपन का जोश भरा,
यौवन की तरह पगली सी है,
निश्छल एक प्रेम पिपाषा है,
प्रेम की यही परिभाषा है।
उन्माद भरा ये सागर है,
जल से लथपथ इक गागर है,
बस अपनेपन का भूखा है,
अमृतरस में डूबा मधुकर है,
इक तृष्णा है, इक भाषा है,
प्रेम की यही परिभाषा है।
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