किसी की आंख का मोती, कभी नासूर होता है,
कभी जो पास था चेहरा, वो कितना दूर होता है,
जवानी में हजारों ख्वाइशें कुर्बान की जिसने,
बुढापे में वही चेहरा, क्यों मजबूर होता है।
कही लब पे गुज़ारिश है, कही लब पे सिफारिश है,
कही भीगी सी आंखों में, फकत मिलने की ख्वाइश है,
जो तेरे पास है कर ले उसी में सब्र ऐ बंदे,
मिलाया है, छुड़ाया है, ये सब उसकी ही साज़िश है।
कभी जो पास था चेहरा, वो कितना दूर होता है,
जवानी में हजारों ख्वाइशें कुर्बान की जिसने,
बुढापे में वही चेहरा, क्यों मजबूर होता है।
कही लब पे गुज़ारिश है, कही लब पे सिफारिश है,
कही भीगी सी आंखों में, फकत मिलने की ख्वाइश है,
जो तेरे पास है कर ले उसी में सब्र ऐ बंदे,
मिलाया है, छुड़ाया है, ये सब उसकी ही साज़िश है।
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